हंगरी की कैटालीन कारिको, जिन्हें कभी उनके काम से बर्खास्त किया गया था । आज उन्ही के द्वारा विकसित तकनीक से विश्व को पहली ‘मैसेंजर आरएनए कोरोना वैक्सीन’ मिली।
इस वैश्विक कामयाबी को दिलाने में अलग-अलग देश वा क्षेत्रो के विभिन्न दिग्गजों ने अपनी अहम भूमिका निभाई और ऐसे कार्य को संभव कर दिखाया जिसके लिए उनका नाम भविष्य में हमेशा याद किया जाएगा।
कोरोना रूपी महामारी से चली लम्बी लड़ाई लड़ने में पिछले एक साल में हर देश ने अपना कुछ न कुछ योगदान दिया। २ दिसंबर 2020 को इंग्लैंड ने जब ‘फाइजर-बायोएनटेक कोविड-19 वैक्सीन’ (Pfizer-BioNTech COVID-19 vaccine) को सार्वजनिक टीकाकरण की अनुमति दी तो हर जगह हैरानी के साथ खुशी की लहर दौड़ गई। ये पहली ‘मैसेंजर आरएनए (mRNA) कोरोना वैक्सीन’ है।
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प्राप्त जानकारी के अनुसार एक वर्ष के कम समय मे कोरोना वैक्सीन इज़ाद करने मे चार नाम बेहद महत्तवपूर्ण रहे हैं। यह चार नाम इस प्रकार है –
1.हंगरी की कैटालिन कारिको (Katalin Kariko)
2.तुर्की के उगुर साहिन (Ugur Sahin)
3. तुर्की की ओजलोम टुरैसी (Ozlem Tureci)
4. ग्रीस निवासी और फाइजर सीईओ अल्बर्ट ब्रुला (Albert Bourla)
कैटालिन कारिको –
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साल 1995 में हंगरी की रहने वाली कैटालीन कारिको को यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसिलवेनिया से बर्खास्त कर दिया गया था। कैटलिन उस समय ‘ mRNA ‘ पर ही अनुसन्धान कर रही थीं। उनका अनुसन्धान उस समय के जानकारों को वास्तविकता से परे लगा जिसके कारण उनके अनुसन्धान को आगे बढ़ाने के लिए कभी भी आर्थिक सहयोग और प्रोत्साहन नहीं मिला ।
आज कोरोना काल में बनी फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन ने यह साबित कर दिया कि वह बिलकुल सही थीं। ये दोनों वैक्सीन उसी mRNA तकनीक पर आधारित हैं जिस पर कैटालिन वर्षो पहले काम कर रही थी।
उगुर साहिन –
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तुर्की के रहने वाले उगुर साहिन और उनकी पत्नी ओजलोम टुरैसी वैज्ञानिक ‘एन्टरप्रेनर’ हैं। अत्यंत सादगीपूर्ण जीने वाले साहिन अपने कार्यालय से थोड़ी दूर एक छोटे कमरे में गुजर बसर करते हैं और अपने काम पर साइकिल से जाते हैं। मात्र 4 वर्ष की आयु में वह माता-पिता के साथ तुर्की से जर्मनी आ गए थे। इसके बाद वह डॉक्टर बने और उन्होंने अपनी रिसर्च ट्यूमर सेल में इम्युनोथेरेपी पर की। शुरुआत में वह कैंसर के इलाज के लिए मोनोकोलेन एंटीबॉडी पर रिसर्च कर रहे थे, लेकिन कुछ समय बाद उन्होंने mRNA तकनीक पर रिसर्च करनी शुरू कर दी।
फाइजर प्रमुख अल्बर्ट उनके बारे मे कहते है कि साहिन एक असामान्य व्यक्ति हैं उन्हें केवल विज्ञान की परवाह रहती है। बिजनेस की बात करना उनके बस की नहीं है। वहीं साहिन कहते हैं कि विश्वास और निजी रिश्ते बहुत महत्तवपूर्ण होते हैं। उन्होंने दो साल पहले बर्लिन में हुयी एक कॉन्फ्रेंस में कहा था कि ये तकनीक ( mRNA ) भविष्य मे आने वाली किसी भी नई महामारी में जल्द ही वैक्सीन बनाने में बहुत कारगर साबित होगी। आज के संदर्भ में उनके शब्द बिलकुल सही और सटीक साबित हुए।
ओजलोम टुरैसी –
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साहिन की पत्नी और उनकी सहकर्मी ओजलोम टुरैसी का जन्म तुर्की के भौतिक वैज्ञानिक के घर में हुआ था। बचपन मे उनका सपना नन बनने का था लेकिन बाद में उन्होंने चिकित्सा शास्त्र का अध्ययन किया । उनकी मुलाकात साहिन से हुयी । दोनों ने विवाह कर लिया। दोनों में काम का जुनून इतना अधिक था कि वह शादी के ठीक बाद रिसर्च के लिए अपनी लैब पहुँच गए थे। टुरैसी ने साहिन के साथ मिल कर ‘mRNA ‘ पर रिसर्च की थी। आज जब वैक्सीन बनी है तो चारो और इस दंपत्ति की चर्चा हो रही है ।
फाइजर सीईओ अलबर्ट ब्रुला –
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ग्रीस निवासी अलबर्ट ब्रुला फाइजर के सीईओ और साथ ही मशहूर इम्युनोजिस्ट भी हैं। कोरोना वैक्सीन के निर्माण के लिए उन्होंने सरकार से मिलने वाली आर्थिक सहायता लेने से इंकार कर दिया। । उन्होंने अपने वैज्ञानिकों को पूरी छूट दी और बॉयनटेक के साथ मिल कोविड की वैक्सीन तैयार की।
दरअसल, उनका मकसद इस शोध को राजनीति से दूर रखना था इसलिए उन्होंने सरकार से पैसे नहीं लिए। उनका कहना है – मैं अपने वैज्ञानिकों को नौकरशाही के दबाव से दूर रखना चाहता था। जब आप किसी से पैसा लेते हैं तो उसमें कई दबाव भी झेलने पड़ते है।