मनुष्यो का अन्त आने पर आप क्या बचाना चाहेंगे ?

पृथ्वी में रह रही मानव प्रजाति के समग्ररूपेण नष्ट होने का संयोग अथवा दुर्योग यदि सुनिश्चित हो गया तो आप क्या करेंगे ?
वर्तमान में ‘होमो सेपियन्स’ कहलाने वाले इसी मानव प्रजाति अर्थात हमारा ही एकछत्र राज्य है पृथ्वी में। विज्ञान की विचारणा है ‘होमो सेपियन्स’ के अस्तित्व में आने से पहले इस धरा पर डायनासोर का राज्य और हुकूमत चलती थी।
‘वन हू ह्याज अ बिगनिंग मस्ट ह्याव एन इन्ड’। पृथ्वी के निर्माण उपरान्त अनेको बार इस वाक्य की सत्यता पुष्टि हुयी है। विगत में डायनासोर के साथ भी यह घटित हुआ और उनकी प्रजाति के समग्र उन्मूलन के पश्चात् ही ‘होमो सेपियन्स’ के अस्तित्व में आने की सम्भावना का सूत्रपात हुआ। इस सूत्रपात के क्रम में लाखो वर्षो तक एक के बाद एक अनेको सुखद संयोगो की श्रंखला फलीभूत होते रहने के फलस्वरुप ही ‘होमो सेपियन्स’ अर्थात हम मानवो ने जल ,थल, नभ होते हुए सुदूर अंतरिक्ष तक अपनी कीर्ति पताका फहराने में कामयाबी पाई ।
अब यदि पुनः उपरोक्त वाक्य के घटित होने के प्राथमिक चरण चिन्ह परिलक्षित हुए तो आप क्या करेंगे ?
मै आपकी सुगमता के लिए महान वैज्ञानिक रिचर्ड फाइनमेन का इस विषयक दृष्टिकोण बयान करता हूँ। रिचर्ड ने कही कहा है यदि पृथ्वी में मानव प्रजाति के समग्र उन्मूलन का संकट खड़ा होता है और हमारे पास मानव ने अर्जित किये अथाह ज्ञान /विज्ञान से कोई एक वाक्य ही आने वाली नवीन सृष्टि के लिए संरक्षित करने की सुविधा हो तो हमें इसके लिए ‘एटम’ विज्ञान को चुनना चाहिए।
कहने की जरुरत नहीं फाइनमेन के दृष्टिकोण में मानवो द्वारा उपलब्ध अथवा अर्जित किये गए सारे कार्यो में ‘एटम’ सम्बन्धी विज्ञान ही सबसे महत्वपूर्ण है। रिचर्ड महोदय इसी विज्ञान को संरक्षित कर नई सृष्टि तक पहुंचने की अभिलाषा व्यक्त करते है।
आपके विचारानुसार कौन से ज्ञान अथवा विज्ञान को संरक्षित कर नई सृष्टि तक पहुंचाना उपयोगी होगा ?
अब आप समझ ही गए होंगे इस लेख का प्रारम्भ कल्पना की बिसात में बुना गया था क्यों न इसमें कल्पना के घोड़े उड़ाते हुए व्योम में हवाई किले बना लुत्फ़ उठाया जाए। क्या आप तैयार है इसके लिए ! तो आइये चलते है एक नितांत निठ्ठले की ‘सुपर डुपर’ निठ्ठला चिंतन यात्रा में –
मेरे परम मित्र है शरत चंद्र बस्ती। भाषा की शुद्धता एवं स्पष्टता उन्हें नींद से भी ज्यादा प्यारी है स्वपन में भी यदि कोई गलत वाक्य बोले तो वह पहले वाक्य को शुद्ध करते है। उनका मानना है मनुष्य की सारी प्रगति का एकमात्र कारण भाषा और भाषा ही है तो निश्चित है
शरतजी भाषा और व्याकरण की वकालत करेंगे। मेरे पूर्व बॉस एवं संपादक जिवेन्द्र सिंखडा सूचना एवं विचार के आदान प्रदान को ही प्रगति तथा विकास की जड़ मानते है तो उनके चयन में पत्रकारिता ही सर्वोपरि रहेंगी।
नेपाल के नामचीन साहित्यकार मित्र सरुभक्त का साहित्य ही नहीं जीवन दर्शन ही ‘अहंकार’ को विकास ही क्या प्रकृति का मूल मानता है तो वह तो एक वाक्य क्या, एक शब्द से ही काम चला लेंगे ”लिखो अहंकार” । बड़े भाई सदृश्य अरुण कुमार सुवेदी ‘क्वांटम मैकेनिक्स’ के अलावा किसी अन्य पर राजी नहीं होंगे। मित्र गुरु प्रसाद मैनाली ‘नैनो टेक्नोलॉजी’ के साथ जायेगे तो प्रोफ़ेसर उदयराज खनाल प्रमाणित कर देंगे सभी का मूल गणित है। आयुर्वेदाचार्य आयुर्वेद के पक्ष में जिरह करेंगे , ‘मोर्डर्न मेडिसिन के खुंखाराचार्य’ डॉ त्रेहान सरीखे डाक्टर कोई ‘कार्डियोलॉजी’ ,कोई ‘सर्जरी’ ,कोई ‘ब्लड ट्रांसफ्यूजन’ (प्लाज्मा थेरापी ) का ज्ञान हस्तांतरित करने की जिरह करेंगे।

किसी आध्यात्मिक जीव को यदि यह अवसर मिला ( गर वह मेरे जैसा उच्च कोटि का हुआ तो – मजाक समझे – सच भी समझे तो मुझे दिक्कत नहीं है ) तो यह वाक्य यही होगा – ”ईश्वर सर्वप्राणीनाम देहम आसितः।
शिक्षाविद के चयन में ‘विधा धनं सर्व धनं प्रधानम’ के अतिरिक्त कुछ और होने की सम्भावना अति क्षीण होंगी। किसी का झुकाव बुद्ध वचनो की ओर होगा किसी का ‘मेडिटेसन’ की ओर। निश्चय ही कोई न कोई आनुववंशिकी औऱ ‘डीएनए’ संश्लेषण विज्ञान पर ठप्पा लगाएगा अब नाम तो नहीं लिख सकता गर मैंने लिखा भी तो सम्पादक की वक्र दृष्टि का शिकार हो जाएगा। अगर किसी छुटभय्ये राजनीतिज्ञ अथवा पत्रकार को यह मौका मिला तो यह महान वाक्य होगा – ऐसे -वैसे -जैसे भी हो अपना काम बनाओ। अब आपका चयन क्या होंगा आप खुद निश्चय करके आगे पढ़े।
अब देखिये पृथ्वी तो कुल है ही कितनी ? कुल मिलकर १२,७४२ किलोमीटर व्यास की छोटी सी गोली न है जिसके एक बिंदु से सर्वाधिक दूरी का दूसरा बिंदु २० हज़ार किलोमीटर के आसपास है औऱ गर इससे भी ज्यादा चले तो नेपाली में एक कहावत है ‘घूमीफिरी रूमजाटार’ ( मतलब लौट के बुद्धू घर को आये )।

क्या आपको मालुम है मनुष्य की सबसे अधिक दूरी में पहुंच कहाँ तक हुयी है? आपका जबाब चन्द्रमा है तो जबाब सही होते हुए भी पूर्ण सही नहीं है। मनुष्य की पहुँच मंगल ,शनि ,प्लूटो तक हो चुकी है। पहुँच का मतलब सिर्फ सशरीर पहुंचना ही नहीं होता ,इस ‘टर्मिनोलॉजी’ को समझते हुए आगे बढे।

वास्तव में मनुष्य की पहुँच सूर्य से भी बहुत ज्यादा दूर तक हो चुकी है। सूर्य तो है ही कितना ? महज १५ करोड़ किलोमीटर ही तो है पृथ्वी से सूर्य की दूरी ! हम ‘होमो सेपियन्स’ की पहुँच करोड़ ही नहीं अरबो किलोमीटर दूर तक हो चुकी है।

voyager route

वायेजर १ औऱ वायेजर २ ( VOYAGER 1 & 2 ) मनुष्य निर्मित दो यान पृथ्वी और सूर्य की दूरी से १५० गुणा ज्यादा दूर जा चुके है। ५ सेप्टेम्बर सन १९७७ में नासा के द्वारा प्रक्षेपित यह यान आज १८ नोवेम्बर २०२० (लिखने के समय ) के दिन ४३ वर्ष २ महीने १२ दिनों के उपरान्त पृथ्वी से १५१.८४५३ एयू ( ASTRONOMICAL UNIT – 1 A. U. = डिस्टेंस बिटवीन सन एंड अर्थ ) अर्थात २२ अर्ब ७१ करोड़ किलोमीटर से सन्देश भेज रहा है। यह अलग बात है प्रकाश की गति से चलने वाले रेडियो सन्देश को पृथ्वी से वायेजर तक पहुंचने अथवा वहां से पृथ्वी तक आने में २१ घंटे २ मिनट ५१ सेकेण्ड का समय लगता है। कहने की जरुरत नहीं सूर्य के प्रकाश को वायेजर तक पहुंचने में २१ घंटे २ मिनट ५१ सेकेण्ड लगते है। अभी कुछ दिन पहले ही नासा ने ‘इंटरस्टेलर स्पेस’ में निरंतर गति कर रहे इस यान से सम्पर्क साधा था।

to send or recive sms from voyager it takes 21 hours

मैंने अकस्मात् वायेजर यान की चर्चा निरुद्देश्य नहीं की है ,इसका सम्बन्ध इसी प्रकरण से है। तो सम्बन्ध क्या है कि एक बहुत प्रतिभाशाली वैज्ञानिक ,लेखक ,चिंतक हुए है पृथ्वी पर। कार्ल सगन नाम के इन वैज्ञानिक के परामर्श अनुसार प्रक्षेपण के समय वायेजर यान में बहुत सी चीजे रखकर भेजी गयी थी।
अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जिम्मी कार्टर ,यूनाइटेड नेशन के तत्कालीन सेक्रेटरी जनरल कुर्त वॉल्डहाइम की आवाज़ में शुभकामना सन्देश के साथ पृथ्वी में प्रचलित विभिन्न ५५ भाषाओ के शुभकामना सन्देश भेजे गए थे। इसके साथ ही बीथोवन -मोजार्ट -बिली जॉन्सन ,चक बेरी, वाल्या बालकान्स्का के पाश्चात्य संगीत के अलावा भारतीय गायिका केसरबाई केरकर का राग भैरवी में आधारित गीत ‘जात कहाँ हो अकेली गोरी’ भी वायेजर यान में भेजा गया था।

kesar bai kerkar

पृथ्वी के विभिन्न स्थानों के फोटो ,यहाँ की विभिन्न प्रकार की ‘लाइफ फार्म’ के फोटो विभिन्न ‘साइंटिफिक’ जानकारी के साथ वायेजर यान में ‘इमेजिंग साइंस सिस्टम’ (ISS ), ‘अल्ट्रावायलेट स्पेक्ट्रोमीटर’ (UVS ),’इंफ़्रारेड इंटरफेरोमीटर स्पेक्ट्रोमीटर’ (IRIS ),’प्लेनेटरी रेडियो एस्ट्रोनॉमी एक्सपेरिमेंट’ ( PRA ), ‘फोटोपोलरी मीटर’ (PPM ) , ‘ट्रीएक्सिअल फ्लक्स गेट मैग्नेटोमीटर’ (MAG ),’प्लाज्मा स्पेक्ट्रोमीटर’ (PLS ), ‘लो एनर्जी चार्जड पार्टिकल्स एक्सपेरिमेंट’ (LECP ) ,’प्लाज्मा वेव्स एक्सपेरिमेंट’ (PWS ), ‘कास्मिक रे टेलिस्कोप’ (CRS ), ‘रेडियो साइंस सिस्टम’ (RSS ), जैसी अनेको प्रविधि जड़ित है।

voyager systems

आपके सर के ऊपर आकाश में विभिन्न खगोलीय पिंडो के साथ साथ बहुत सारी मानव निर्मित वस्तुए घूम रही है। मानव निर्मित इन वस्तुओ में लगभग 400 किलोमीटर ऊपर एक कृतिम उपग्रह भी लगातार घूमता रहता है। ‘इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन’ नाम की यह अंतरिक्ष प्रयोगशाला ९३ मिनट में पृथ्वी का एक चक्कर पूरा करती है। इस प्रयोगशाला में रहने वाले लोग एक दिन में १६ बार सूर्योदय का अनुपम दृश्य देखते है। सन २००० के बाद से इस प्रयोगशाला में हमेशा कुछ व्यक्ति रहते आये है। कभी कभी तो यह संख्या १३ तक भी पहुँची है। कुछ दिन पहले तक यहाँ जेसिका मेर ,ओलेग स्क्रीपोच्का ,ड्र्यू मॉर्गन ,लुका परमिंटानो और अलेक्जेंडर स्कॉभोरतसोभ रह रहे थे। कल ही अर्थात १७ नोवेम्बर में पृथ्वी से चार लोग माइक हॉपकिंस ,विक्टर ग्लोवर ,शैनन वाकर एवं सोइची नोगुची यहाँ ६ महीने रहने के लिए पहुंचे है। इस अंतरिक्ष प्रयोगशाला में वैज्ञानिको ने ढेर सारे लोंगो के डीएनए के साथ ही बहुत किस्म के बीज भी रख छोड़े है। सोचिये , वायेजर यान और ‘इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन’ में इन विभिन्न वस्तुओ के रखने के पीछे का उद्देश्य क्या होगा ?

international space station
inside iss so many person can live

पहला उद्देश्य तो सर्व विदित है। पृथ्वी के अतिरिक्त अन्य कही किसी प्रकार का जीवन (एलियन ) है तो उसे पृथ्वी के बारे में सूचित करना। यदि इन यानो से किसी परग्रही की मुलाकात हो जाए तो उन्हें पृथ्वी और यहाँ के जीवन के बारे में खबर मिल सके। और दूसरा कारण
अप्रत्यक्ष /प्रत्यक्ष रूप में वही है जिसकी इस लेख में चर्चा हो रही है। कथं कदाचित यदि पृथ्वी में रह रहे मनुष्यो का हश्र डायनासोर जैसा होता है तो आने वाली नई सृष्टि के लिए कुछ ज्ञान हस्तांतरित – स्थानांतरित – रूपांतरित हो सके।
माशाअल्लाह कितनी कमीनी -निम्न -घटिया – रद्दी – बाहियात और क्षुद्र किस्म की सोच रखता है प्राणियों में सर्व श्रेष्ठ कहलाने वाला प्राणी !

पृथ्वी उत्पत्ति उपरान्त अभी तक ५-६ बार महाप्रलय ( mass extinction ) घटित होने की घोषणा विज्ञान ही करता है। साथ में विज्ञान यह भी बतलाता है हर बार के प्रलय के उपरान्त पहले से श्रेष्ठ किस्म के जीवन ‘डोमिन’ का विकास हुआ। श्रेष्ठता का अहंकार और मूर्खता दोनों ही उन्नत कोटि की होती है। क्या यह सब पढ़ने के बाद आपको नहीं लगता स्वयं को प्राणी श्रेष्ठ समझने वाले मनुष्यो की सोच बड़ी सस्ती और चुटकले की भाँति है। आज का मनुष्य भविष्य में होने वाली किसी भी प्रलय के उपरान्त फिर से होने वाली नवीन सृष्टि को उसका ही पुराना ज्ञान देना चाहता है ! शायद मनुष्य यही सोचकर ऐसा करना चाहता है की प्रकृति को गर उसका पुराना ‘रोडमैप’ नहीं मिला तो वह नई सृष्टि नहीं कर पाएगी।
मेरी और आपकी मूर्खताओं की बात छोड़िये। वैज्ञानिक रिचर्ड फाइनमेन की मूर्खता का विश्लेषण कर ‘हमारी मूर्खता क्या मूर्खता’ सोच संतुष्टि लीजिये। फाइनमेन कहते है हमें ‘एटम’ विज्ञान के ज्ञान को सुरक्षित एवं संग्रहित रख नई सृष्टि तक पहुंचना होगा। ऐसा कहते समय वह यह बात पूरी तरह से भूल जाते है कि लगभग २ हज़ार वर्षो के निरंतर और अथक प्रयासों एवं हज़ारो श्रेष्ठ मस्तिष्क की सक्रिय सहभागिता के फल स्वरुप ही मनुष्यो को ‘एटम’ का ज्ञान प्राप्त हुआ है। और वह ‘एटमोलोजी’ को एक ‘चिप’ में सुरक्षित वर्णित कर नई सृष्टि को हस्तांतरित करना चाहते है। वह इस बात को पूरी तरह विस्मृत कर जाते है कि ज्ञान श्रंखलाबद्ध (cumulative ) होता है। कणाद ,डाल्टन आदि के अतिरिक्त जेजे थामसन (अणु के भीतर इलेक्ट्रॉन की खोज- १८९७ ),अर्नेस्ट रदरफोर्ड ( अणु के भीतर प्रोटोन की खोज-1920 ) ,जेम्स चैडविक (अणु के भीतर न्यूट्रॉन की खोज- १९३२ ), नील्स बोहर ( एटमिक स्ट्रक्चर ,क्वांटम थ्योरी ) के अलावा तमाम आधुनिक वैज्ञानिको के क्रमगत प्रयासों के उपरान्त ही एटम के ज्ञान से रूबरू हो पाया है विज्ञान अथवा मनुष्य।
एक आधुनिक कहानी की चर्चा कर लेख को आगे बढ़ाते हुए विश्राम की और बढ़ना चाहता हूँ।
भारत के अंडमान निकोबार द्वीप समूह के पास एक छोटा सा द्वीप है सेंटिनल। यहां के निवासियों को सेंटीनेली कहा जाता है। इस द्वीप के निवासी शेष पृथ्वी से पूरी तरह पृथक है। वैज्ञानिको का कहना है यहाँ के निवासी अभी तक ‘स्टोन ऐज’ में ही रह रहे है। अनुमान है कि यहाँ के लोग पिछले ७० हज़ार वर्षो से यहाँ रह रहे है। ‘होमो सेपियंस’ अर्थात आधुनिक मनुष्यो ने किये किसी भी प्रकार के विकास की किरण यहाँ तक नहीं पहुंची है।
अब कल्पना कीजिये सेंटिनल द्वीप और यहाँ के निवासीयो के अतिरिक्त सम्पूर्ण पृथ्वी का जीवन नष्ट हो जाता है। नष्ट होने से पहले हम ‘होमो सेपियंस’ अपना सभी ज्ञान एक कंप्यूटर में संग्रहित कर इस द्वीप के निवासियों तक पंहुचा देते है। वह इस अचानक प्राप्त हुए कम्प्यूटर और इसमें संग्रहित तमाम ज्ञान का क्या उपयोग करेंगे ?
क्या वह कम्प्यूटर खोल बिजली बनाना सीख जायेगे ? रॉकेट दो दिन में ही बना लेंगे ? व्याकरण सीख लेंगे ,गणित सीख लेंगे। मित्र सुशोभित के जैसा उत्कृष्ट लिखना सीख जायेगे ?
नहीं मित्रो किसी बात की भी गुंजायस नहीं है। वह हमारी भाषा ही नही समझेंगे। अरे लिखते लिखते मैं भी बहक गया। भाषा को गोली मारो। क्या कम्प्यूटर बिना किसी ‘पावर सप्लाई’ के खुल जाएगा ? और ‘पावर सप्लाई’ … अरे भाई हमने ही इसे खोजे कितने वर्ष हुए है? याद है न एडीसन ,अरे वही थामस अल्बा। और इन्ही के द्वारा सताया गया निकोला, अरे वही निकोला जिसके नाम से कंपनी खोल एलन मस्क दुनिया का पांचवा सबसे रईस आदमी बन गया, टेस्ला।

समानांतर युग में रह रहे मनुष्य ही हमारी भाषा नहीं समझेंगे और हम कल्पना करते है नई सृष्टि तक अपनी बात पहुंचने की ! अरे एक बार हँस तो लीजिये। अब इस प्रसंग में और क्या लिखना ? इतने पर भी नहीं समझने वालो की दवा शायद हकीम लुकमान के पास ही होगी मेरे पास तो नहीं। एक दूसरी बात भी है गर मैंने अब कुछ भी लिखा तो मेरा अपना कोई आग्रह प्रतिविम्वित हो सकता है। समझदार पाठको की समझ में आ ही गया होगा हम इतने उन्नत होने के बाबजूद आज तक ‘इंडस वैली’ ,इजीप्सियन ,मेसोपोटामियन सभ्यता की भाषाओ को ‘डिकोड’ नहीं कर पाए और नई सृष्टि के बाद जन्मे प्राणी हमारी भाषा को समझ दो चार वर्षो में ही सारा ज्ञान पा जाएंगे।

मुझे गर पृथ्वी में मानव प्रजाति के सम्पूर्णतया नष्ट होने की सूचना कुछ घंटे पहले मिल गई तो ‘आई विल गो फॉर लास्ट पैग ऑफ़ व्हिस्की एंड लास्ट कांटेक्ट विद माई गर्ल ।

Published by gyanmitra

a monk who like to study and travel and sometime try to write some feelings

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